''कहते हैं जिसकी लाठी उसकी भैंस,''
इसी के उपर गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है ''समर्थ को दोस नहीं गुसाई'' यानि कि शक्ति सम्पन्न के दोष भी छुप जाते हैं, ऐसा ही एक व्यक्ति था 'मानू गुर्जर' प्राचीन काल से ही भारत में नारीयों को पूज्या कहा गया है, तथा इसका हरसंभव मान भी रखा जाता था, छटी सदी की बात है सिन्ध में महाराजा दाहिर राज्य करता था उसी के समय में एक सशक्त विद्रोही उभर कर आया जिसने अपनी वीरता और कर्मशीलता से ही नहीं बल्कि जनसंरक्षण की भावना से जनता व राजा के मन में ऐसा स्थान प्राप्त कीया था कि वह एक दिन महाराजा का सेनापति बन गया था,
वीरता के इस अनुपम स्वरूप का नाम था ''मानू गुर्जर''
कहते हैं कि विद्रोही लोगों को जनभावनाऐं सुरक्षा का कवच पहनाती हैं तो दूसरी तरफ उनके अनाचार उस कवच को भेदते रहते हैं जो जनभावना का ध्यान रखते हुऐ शासन या समाज के प्रति विद्रोही करते हैं,
सिन्ध में दतिहास प्रसिद्व गुर्जरों का राज्य था जो कि सममय के साथ साथ काल के गर्त में समा गया, उसी का वंशज था मानू गुर्जर , समाज में उस समय कोई भी ऐसा नहीं था जो कि आबों से औरतों कि रक्षा कर सके , अरब आक्रमणकारी लगातार लज्जाभंग व अरब देशों में भारतीय औरतों को दासी बनाकर भेज रहे थे जिससे स्वंय राजा दाहिर भी नही रोक पा रहा था
एक दिन मानू साथियों सहित समुद्र तट पर विश्राम कर रहा था तभी उसको अचानक महिलाओं का करूण क्रन्दन सुनाई दिया, सुनते ही उस गुर्जर का ह्रदय द्रवित हो उठा उसने अपने साथीयों को बुलाया और कहा ''जाओ और इस क्रन्दन का पता करो''। सरदार मानू की आज्ञा पाते ही कुछ साथी उधर चले गये जिधर से महिलाओं के शोर की आवाज आ रही थी। वो वहां जाकर देखाते हैं कि कुछ अरब सैनिकों ने भारतीय नारियों को पकड रखा था और उनको त्रासदी दे रहे थे कि उन्हें अरब ले जाकर दासियों के रूप में बेचेंगेा इस सम्पूर्ण द्रश्य कसे भांपकर उन्होने सरदार मानू को सूचना दीा सुनते ही उस वीर का क्षत्रियत्व जाग उठा और चेहरा लाल हो गया जैसे मानो फटेगा , मानू ने अपने साथियों को फटकार लगाते हुऐ कहा कि ''धिक्कार है तुम पर उठो कायरों तुम यह सब देखकर वापिस कैसे आ गये अब चलो मेरे वीरो दफन कर दो उन यवनों ऐसा मारों उनको कि उनकी पुश्तें भी याद रखें कि मिला था कोई गुर्जर ा''
और अगले ही कुछ समय में वो सभी उन यवन सैनिकों पर कहर बनके टूट रहे थे करीब तीन प्रहर तक युद्व चला देखने वाले देखते ही रह गये उन वीरों का युद्व जिनको वही समाज में बागी कहते थे और आखिर में मानू की विजय हुई लेकिन इस महासंग्राम में मानू के कई साथी खेत रहे थे , लेकिन यवनों को ऐसा सबक मिला कि उन्होने मानू की जिन्दगी में कभी दुबारा सिन्ध की तरफ आंख उठा के नही देखा
अबलाओं के जीवन और धर्म की रक्षा करने वाले मानू से जब अबलाओं ने यह पूछा कि वह कौन है, कहॉ रहता है तब मानू ने कहा कि ''मेरे लोग मानू गुर्जर कहतें हैं वैसे पूरे सिन्ध में मुझे बाग गूजर कहते हैं'' सुनते ही कई महिलाऐं तो गश खा के गिर पडी, तब मानू बुदबुदाया ''तो गद्वारों ने इतना नाम कर रखा है क्या मेरा'' फिर वह थोडा अधीर होते हुऐ बोला ''सुनो, तुम सभी ने अब तक मानू के बागी व लडाकू रूप को ही देखा है, वैसे बागी के अलावा मानू इंसानियत को भी मानता है,आप सभी आजाद हैं और आज से मुझे अपना भाई ही समझे।'' वो सभी औरतें उसको जुग जुग जीयों का आशीवार्द देकर चली गई । और जाकर उन्होने मानू के पक्ष में गुहार कि ''राजन वो गुर्जर ,बागी कैसे है उसने तो हम अबलाओं को बचाया है क़पया उसे क्षमा दान दें।'' नहीं बागी क्षमा के पात्र नहीं होते - राजा दाहिर बोला। तब महिलाऐं बोली ''जब आपके राज्य में महिलाऐं सुरक्षित ही नहीं है तो यहां रहने से क्या फायदा इससे अच्छा तो हम मानू के क्षेत्र में रहेंगे कम से कम सुरिक्षत तो रहेंगी।'' ये शब्द किसी राजा के बडे जख्म से कम नहीं होते । अब मानू की राजा से जेकर प्रजा सभी के मन में इज्जत थी।
इसी कारण सरदार मानू से मिलने कि इच्छा के चनते स्वंय दाहिर समुद्रतल पर उस अबला हितेशी से मिलने आया। और वीरता के चरणों में सिहांसन आकर झुक गया।
जब दाहिर ने मानू से परिचय पूछा तो मानू ने अपना परिचय इसप्रकार दीया ''महाराज भूतपूर्व गूजर वंश का वंशज और सिन्ध का एक साधारण व्यक्ित ''मानू गूजर' कहते हैं अरबों की व्यापारिक निति एवं दास - दासियों को खरीदनें की असामाजिक प्रथा ने मुझे विद्रोही बना दिया है क्योंकि आपका शासन तो अरबों से हमारी इज्जत की रक्ष्ाा भी नहीं कर सका है इसी कारण मुझे राजद्रोही बागी कहा जाता । और मैं अत्याचार सहने के बजाय बागी कहलाना पसंद करता हूं।'' सुनकर राजन की आंखें भर आयी। और वो रूधें गले से बोले ''बेटा । मानू तुम्हारें कार्य तुम्हें वास्तविक राजा साबित करते हैं जबकि मै राजा होते हुऐ भी कभी भी अरबों का सामना नहीं कर सका।और आपके पूर्वजों द्वारा दिया गया यह राज्य मैं तुमको सौपता हूं।'' ब्राहम्न राजा कि बात सुनकर क्षत्रिय मानू का ह्रदय द्रवित हो गया वह बोला राजन क्षत्रिय ब्राहम्नों को दान देते हैं लेते नहीं। तब दाहिर बोला वीरवर क्षत्रिय ब्राहम्न की रक्षा करते हैं इसलिए आप यह जिम्मेदारी सम्हालें। और इसका उत्तर मानू के पास नहीं था।
और उसने राजा दाहिर कि बात मानते हुऐ सेनापति का पर ग्रहण कर लिया ।
तो दोस्तो ऐसा था वीर मानू गुर्जर लेकिन आज उसी गुर्जर कौम में औरतें बिक रहीं हैं बार -बार।
जय गुर्जर जय विकास जय भारत ।
इसी के उपर गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है ''समर्थ को दोस नहीं गुसाई'' यानि कि शक्ति सम्पन्न के दोष भी छुप जाते हैं, ऐसा ही एक व्यक्ति था 'मानू गुर्जर' प्राचीन काल से ही भारत में नारीयों को पूज्या कहा गया है, तथा इसका हरसंभव मान भी रखा जाता था, छटी सदी की बात है सिन्ध में महाराजा दाहिर राज्य करता था उसी के समय में एक सशक्त विद्रोही उभर कर आया जिसने अपनी वीरता और कर्मशीलता से ही नहीं बल्कि जनसंरक्षण की भावना से जनता व राजा के मन में ऐसा स्थान प्राप्त कीया था कि वह एक दिन महाराजा का सेनापति बन गया था,
वीरता के इस अनुपम स्वरूप का नाम था ''मानू गुर्जर''
कहते हैं कि विद्रोही लोगों को जनभावनाऐं सुरक्षा का कवच पहनाती हैं तो दूसरी तरफ उनके अनाचार उस कवच को भेदते रहते हैं जो जनभावना का ध्यान रखते हुऐ शासन या समाज के प्रति विद्रोही करते हैं,
सिन्ध में दतिहास प्रसिद्व गुर्जरों का राज्य था जो कि सममय के साथ साथ काल के गर्त में समा गया, उसी का वंशज था मानू गुर्जर , समाज में उस समय कोई भी ऐसा नहीं था जो कि आबों से औरतों कि रक्षा कर सके , अरब आक्रमणकारी लगातार लज्जाभंग व अरब देशों में भारतीय औरतों को दासी बनाकर भेज रहे थे जिससे स्वंय राजा दाहिर भी नही रोक पा रहा था
एक दिन मानू साथियों सहित समुद्र तट पर विश्राम कर रहा था तभी उसको अचानक महिलाओं का करूण क्रन्दन सुनाई दिया, सुनते ही उस गुर्जर का ह्रदय द्रवित हो उठा उसने अपने साथीयों को बुलाया और कहा ''जाओ और इस क्रन्दन का पता करो''। सरदार मानू की आज्ञा पाते ही कुछ साथी उधर चले गये जिधर से महिलाओं के शोर की आवाज आ रही थी। वो वहां जाकर देखाते हैं कि कुछ अरब सैनिकों ने भारतीय नारियों को पकड रखा था और उनको त्रासदी दे रहे थे कि उन्हें अरब ले जाकर दासियों के रूप में बेचेंगेा इस सम्पूर्ण द्रश्य कसे भांपकर उन्होने सरदार मानू को सूचना दीा सुनते ही उस वीर का क्षत्रियत्व जाग उठा और चेहरा लाल हो गया जैसे मानो फटेगा , मानू ने अपने साथियों को फटकार लगाते हुऐ कहा कि ''धिक्कार है तुम पर उठो कायरों तुम यह सब देखकर वापिस कैसे आ गये अब चलो मेरे वीरो दफन कर दो उन यवनों ऐसा मारों उनको कि उनकी पुश्तें भी याद रखें कि मिला था कोई गुर्जर ा''
और अगले ही कुछ समय में वो सभी उन यवन सैनिकों पर कहर बनके टूट रहे थे करीब तीन प्रहर तक युद्व चला देखने वाले देखते ही रह गये उन वीरों का युद्व जिनको वही समाज में बागी कहते थे और आखिर में मानू की विजय हुई लेकिन इस महासंग्राम में मानू के कई साथी खेत रहे थे , लेकिन यवनों को ऐसा सबक मिला कि उन्होने मानू की जिन्दगी में कभी दुबारा सिन्ध की तरफ आंख उठा के नही देखा
अबलाओं के जीवन और धर्म की रक्षा करने वाले मानू से जब अबलाओं ने यह पूछा कि वह कौन है, कहॉ रहता है तब मानू ने कहा कि ''मेरे लोग मानू गुर्जर कहतें हैं वैसे पूरे सिन्ध में मुझे बाग गूजर कहते हैं'' सुनते ही कई महिलाऐं तो गश खा के गिर पडी, तब मानू बुदबुदाया ''तो गद्वारों ने इतना नाम कर रखा है क्या मेरा'' फिर वह थोडा अधीर होते हुऐ बोला ''सुनो, तुम सभी ने अब तक मानू के बागी व लडाकू रूप को ही देखा है, वैसे बागी के अलावा मानू इंसानियत को भी मानता है,आप सभी आजाद हैं और आज से मुझे अपना भाई ही समझे।'' वो सभी औरतें उसको जुग जुग जीयों का आशीवार्द देकर चली गई । और जाकर उन्होने मानू के पक्ष में गुहार कि ''राजन वो गुर्जर ,बागी कैसे है उसने तो हम अबलाओं को बचाया है क़पया उसे क्षमा दान दें।'' नहीं बागी क्षमा के पात्र नहीं होते - राजा दाहिर बोला। तब महिलाऐं बोली ''जब आपके राज्य में महिलाऐं सुरक्षित ही नहीं है तो यहां रहने से क्या फायदा इससे अच्छा तो हम मानू के क्षेत्र में रहेंगे कम से कम सुरिक्षत तो रहेंगी।'' ये शब्द किसी राजा के बडे जख्म से कम नहीं होते । अब मानू की राजा से जेकर प्रजा सभी के मन में इज्जत थी।
इसी कारण सरदार मानू से मिलने कि इच्छा के चनते स्वंय दाहिर समुद्रतल पर उस अबला हितेशी से मिलने आया। और वीरता के चरणों में सिहांसन आकर झुक गया।
जब दाहिर ने मानू से परिचय पूछा तो मानू ने अपना परिचय इसप्रकार दीया ''महाराज भूतपूर्व गूजर वंश का वंशज और सिन्ध का एक साधारण व्यक्ित ''मानू गूजर' कहते हैं अरबों की व्यापारिक निति एवं दास - दासियों को खरीदनें की असामाजिक प्रथा ने मुझे विद्रोही बना दिया है क्योंकि आपका शासन तो अरबों से हमारी इज्जत की रक्ष्ाा भी नहीं कर सका है इसी कारण मुझे राजद्रोही बागी कहा जाता । और मैं अत्याचार सहने के बजाय बागी कहलाना पसंद करता हूं।'' सुनकर राजन की आंखें भर आयी। और वो रूधें गले से बोले ''बेटा । मानू तुम्हारें कार्य तुम्हें वास्तविक राजा साबित करते हैं जबकि मै राजा होते हुऐ भी कभी भी अरबों का सामना नहीं कर सका।और आपके पूर्वजों द्वारा दिया गया यह राज्य मैं तुमको सौपता हूं।'' ब्राहम्न राजा कि बात सुनकर क्षत्रिय मानू का ह्रदय द्रवित हो गया वह बोला राजन क्षत्रिय ब्राहम्नों को दान देते हैं लेते नहीं। तब दाहिर बोला वीरवर क्षत्रिय ब्राहम्न की रक्षा करते हैं इसलिए आप यह जिम्मेदारी सम्हालें। और इसका उत्तर मानू के पास नहीं था।
और उसने राजा दाहिर कि बात मानते हुऐ सेनापति का पर ग्रहण कर लिया ।
तो दोस्तो ऐसा था वीर मानू गुर्जर लेकिन आज उसी गुर्जर कौम में औरतें बिक रहीं हैं बार -बार।
जय गुर्जर जय विकास जय भारत ।
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