बुधवार, 6 मार्च 2013

|||||||||||| संघठन में शक्ति ||||||||||||



कक्षा 5 में का पढ़ी वही कहानी "संघठन में शक्ति" | किसान के चार बेटे , असंघठित ,  लकड़ी का बंडल तोड़ा , सीख मिली एक हुये , पिता बहुत खुश हुआ , हमें भी शिक्षा मिली , संघठन में ही सकती होती है |

3 साल पहले की बात ज्येष्ठ का महिना , दोपहर का वक्त , घर के बरामदे में मैं 4  दोस्तों के साथ ताश के पत्ते खेल रहा | वैसे मै कोई ताश का बड़ा खिलाडी नहीं हूँ लेकिन जब गाँव के दोस्त मिल जाएँ तो मजा आता है |
1 घंटे का खेल हुआ , हंसी मजाक भी हुई , उसी वक्त ताऊ शेर सिंह की भी उपस्थिति हुई , भोंचक्के रह गये | दिल में लगा ताऊ की अब डाट भी खानी होगी | शर्म से चेहरा लाल , फिर ताऊ का आया इक सवाल | बताओ बेटो खेल का क्या है हाल | जवाब भी दिया राजू भाई जीता और दीप भाई (मै खुद) हारा |

बात आगे बढ़ी और फिर ताऊ का इक सवाल , बताओ बच्चो आपको इस खेल से क्या शिक्षा मिली | जवाब मैंने ही दिया देखो ताऊ इस खेल से कोई शिक्षा-विक्षा नहीं ये तो टाइम-पास का साधन है और शट्टे खेलने वालो के लिये बर्बादी है और वो हम खेलते नहीं |

ताऊ का आया स्टेटमेंट तपाक , चल वैसे ही पढ़ा शहर में , और फिर मै शर्म से हो गया दोबारा लाल |
अब ताऊ ने शुरू कर दी अपनी बात |
बताओ हम जो ताश के पत्ते खेलते हैं उसमे जीत किसकी होती है |
और हम सभी ने इक्के (1) की सहमती दे दी | ताऊ ने भी सहमती दी लेकिन फिर पूछ लिया एक और सवाल , की भाई ये इक्का ही क्यों जीतता है |
हम सभी चुप हो गये | ताऊ से हमने विनती की इसके बारे में बताने के लिये |
ताऊ ने बताना शरू किया की भाई जिसकी कीमत 2 (दुग्गी) होती है उसे 3 जीत जातें हैं , इसी तरह 4 को 5 और 6 को 7 और 9 को 10 | अब बात आती है गुलाम की वो को सभी को जीत जाता है क्यों की उसके पास 10+ की शक्ति  है |
अब गुलाम भी बेगम(रानी) से मात खा जाता है और रानी बादशाह(राजा) से हार जाती है क्यों की बादशाह शक्ति में सर्वोसर्वा होता है |
और अब बात बताता हूँ इक्के की , इक्का एकता का प्रतिक है | जिसके पास संघठन है |
इसलिए इक्का बादशाह को जीत जाता है | क्यों की वह संघठित है |
ताऊ की बात खत्म हुई | दिमाग में एक बात आई | "संघठन में शक्ति " |
संघठन राजा को भी हरा सकता है |

इसी प्रकार जिस समाज के लोग संघठित हैं , उनको कोई नहीं हारा सकता | अगर वो असंघठित हैं तो तुरुफ की दुग्गी भी मात दे सकती है |

इसी प्रकार हमे उस ताश के इक्के से सिख लेनी होगी जो एकता की वजह से बादशाह को भी मात दे देता है |

आज सभी गुर्जर भाई बादशाहत को तवज्जो दे रहें हैं लेकिन इक्के की कीमत नहीं समझ पा रहे हैं |

अतः आज हमे केवल उस ताश के इक्के की ज़रूरत है जो गुर्जर समाज को इक रख सकता है |

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संघठन में ही शक्ति है " |||||||||

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जय गुर्जर ||| ||| जय देवनारायण की ||| |||गुर्जर एकता जिंदाबाद |||

दयाराम गुर्जर बानसूर (web developer)

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