गुर्जर आंदोलन: अराजकता में सबकुछ खोया
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से साभार |
- एहतिशाम सिद्दीकी का आलेख

राजस्थान सरकार से अपने लिए विशेष आरक्षण हासिल करने के लिए यहां के गुर्जर किस तरह से कई दिन तक गंभीर अराजकता और हिंसा पर उतारू रहे, पूरे देश में और देश के बाहर भी देखा गया। राजस्थान की वसुंधरा राजे सिंधिया सरकार वोटों के लालच में फंसी खड़ी दिखाई दी और गोली चलवाकर भी इस आंदोलन निपटने में विफल साबित हुई है। इस संघर्ष में तीन दर्जन से ज्यादा लोग मारे गए हैं। किरोड़ी सिंह बैंसला अड़े हुए थे कि चाहे जो हो, जब तक उन्हें आरक्षण में मीणाओं जैसा विशेष दर्जा नहीं मिलता वह अपना आंदोलन जारी रखेंगे। गुर्जर आंदोलन में राजस्थान सरकार यह कथन सही साबित हुआ कि इस आंदोलन में डकैत और अराजक तत्व जनसामान्य को ढाल बनाकर अराजकता और हिंसा फैलाते हुए सुरक्षा बलों पर हमले करते रहे। जाना-माना जगन गुर्जर डकैत कर्नल बैंसला के साथ खड़ा, मीडिया के कैमरों की नजरों से अपने को छिपाने का असफल प्रयास करता देखा गया। जगन गुर्जर ने तो खुलेआम वसुंधरा राजे सिंधिया के धौलपुर के पुश्तैनी घर तक को बम से उड़ाने की धमकी दे डाली। मजे की बात यह भी रही कि आर्ट आफ लीविंग के सूत्रधार आध्यात्मिक गुरू रविशंकर जैसों ने भी इस आंदोलन का समर्थन किया जिसकी लेकर जन सामान्य में तीखी प्रतिक्रिया हुई।
राजस्थान इस अकारथ आंदोलन के कारण पिछले छह महीनों से रेगिस्तान की गर्म रेत की तरह धधकता रहा है। चुनावी जमीन तैयार करने के लिए इस आंदोलन की आड़ में सबकुछ हुआ। राजस्थान सरकार ने गुर्जरों की मांग पर एक आयोग का गठन किया था जिसकी रिपोर्ट आने के बाद वसुंधरा सरकार ने केंद्र सरकार को गुर्जरों को आरक्षण देने के लिए पत्र लिखा था। राजस्थान सरकार ने गुर्जरों को आश्वासन दिया था। लेकिन गुर्जरों ने समझा कि वसुंधरा सरकार धोखा दे रही है इसलिए वह फिर से आंदोलन पर उतर आए और उनका आंदोलन हिंसात्मक हो गया। लोकसभा चुनाव सर पर हैं इसलिए कोई भी राजनीतिक दल राजस्थान की इस आग में कूदने की हिम्मत नहीं जुटा सका, क्योंकि इसमें सबको अपने वोटों की चिंता थी। भारतीय जनता पार्टी इस संघर्ष में फंसी हुई है जिससे अब तय है कि उसे राजस्थान में अगर एक का वोट पाना है तो दूसरे समुदाय का वोट गंवाना है। बाकी राजनीतिक दल मीणा और गुर्जर समुदाय के बारे में खुलकर कोई भी बात कहने से डर रहे हैं।
इस आंदोलन से भारत की जीवन रेखा भारतीय रेल को भारी नुकसान हुआ और राजस्थान का पर्यटन तबाह हो गया। भरतपुर में लोग लोहे के बड़े-बड़े सभ्भल लेकर ऐसे रेल की पटरियां उखाड़ रहे थे जैसे उस जगह पर अब कभी रेल चलनी ही नहीं है। मीडिया के कुछ कैमरामैन भी वहां उन्हें अपने ब्रेकिंग शॉट के लिए गुर्जरों को हिंसा के लिए उकसाते देखे गए ताकि यह आंदोलन और उग्र तरीके से उनके टीवी चैनल पर देश दुनिया को दिखाया जा सके। मीडिया के कुछ अति उत्साही और तथा कथित विशेषज्ञ विश्लेषणकर्ताओं का रोल इस आंदोलन के बारे में केवल तथ्यहीन और अपने भड़काऊ विचार प्रकट करना, खबरों को ब्रेकिंग न्यूज के रूप में पेश करना भर दिखाई दिया। मानो उनका सामाजिक जिम्मेदारियों से कोई सरोकार नहीं है। वे चैनलों पर बैठकर आग लगाते रहे और फोर्स उग्र लोगों और अराजकता से निपटती रही। इस आंदोलन में जो लोग मौत के मुंह में चले गए, अब कोई चैनल या नेता उनके परिवारों का हाल जानने या उनकी मदद को नहीं जा रहा है। इसमें राजस्थान के नागरिक सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों के नेताओं का जैसे कोई भी मतलब और कोई भी जिम्मेदारी नहीं है। उस वक्त अपने चश्मे से देखने और बयानबाजी करने के लिए यहां झुंड के झुंड खड़े दिखाई दिए हैं।
देश के गुर्जर समाज का उसकी देशभक्ति और वीरता का एक इतिहास है। राजस्थान से लगी भारत की सीमाओं पर गुर्जर समाज के लोग रहते हैं और उनके परिवारीजन आए दिन विदेशी हमलावरों और अराजक तत्वों का भी मुकाबला करते हैं। राजस्थान में जिस कौम के नाम वीरता और देश के लिए मर मिटने के हजारों किस्से और बलिदान दर्ज हैं वह अपनी मांग के लिए अपने ही देश में एक ऐसी हिंसा जनित कार्रवाई को अंजाम दें जिससे देश में सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान हो तो उसे उचित नहीं कहा जा सकता। ऐसी स्थिति में गुर्जरों से संयम बरतते हुए राजनैतिक रूप से अपनी समस्या के समाधान के तरीके अपनाने जाने चाहिए थे। यह दुखद स्थिति बन रही है कि जो गुर्जर सीमाओं पर और सेना में रहकर देशद्रोहियों से मोर्चा लेते रहे हैं उन्होंने आज अपने ही देश में अपनों से ही मोर्चा खोल दिया है।
महारानी की विफलताएं
राजस्थान
की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया गुर्जर आंदोलन और इस तरह की जन समस्याओं से निपटने में पूरी तरह से विफल साबित हुई हैं। अपने साढ़े चार साल के मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में वसुंधरा राजे ने राजस्थान को क्या दिया है इस प्रश्न का उनके पास कोई माकूल जवाब नहीं है। अगर साफ-साफ कहा जाए तो राजस्थान में ‘कमल’ को इसकी कीमत चुकानी पड़ी है। अगर महारानी अपने महल से बाहर निकलतीं और आम लोगों के बीच रहतीं तो राजस्थान में ऐसे जातीय आंदोलन खड़े नहीं होते और भारतीय जनता पार्टी का कमल संकट में न होता। ‘महारानी’ तो अपनी जुल्फों के गजरें खिलाती रहीं लेकिन उस कमल को रौंद दिया जिसके कारण उन्हें राजस्थान का ताज मिला। ऐसे ही कई कारणों से आज राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी में भी ‘महारानी’ के खिलाफ विरोध के स्वर उठ रहे हैं।
भाजपा में पूछा जा रहा है कि आखिर वसुंधरा राजे सिंधिया ने ‘कमल’ के लिए क्या किया? कितने वोट जोड़े? राजस्थान के गुर्जर तो भाजपा से उड़ा दिए? गुर्जर आंदोलन खड़ा कैसे हुआ? जब इसकी शुरूआत हुई थी तब ‘महारानी’ क्या कर रही थीं? इतने सारे लोग मरने के बाद अब क्या मतलब रहा है? कहने वाले कहते हैं कि ‘महारानी’ को इस बात से और राजस्थान की जनता से न तो कभी मतलब था और न आज मतलब है। उन्हें यह ताज भी राजघरानों के दरबारी रहे अटल बिहारी वाजपेयी के कारण हासिल हुआ था। वसुंधरा राजे सिंधिया देवी-देवताओं की तरह से अपनी पूजा करवाने और मॉडलिंग के अलावा करती भी क्या रहीं? उनका भाजपा के आम कार्यकर्ताओं से ज्यादा वास्ता ही नहीं रहा। वह तो उनसे मिलती भी नहीं है। भाजपा कार्यकर्ता कहा करते हैं कि इनके यहां कांग्रेस के नेताओं का कोई काम नहीं रुकता है जबकि भारतीय जनता पार्टी के नेता और कार्यकर्ता राजस्थान में भटकते फिर रहे हैं, फर्जी मुकदमों में जेल जा रहे हैं, और भारतीय जनता पार्टी के अभिशाप के कारण दूसरों की नजर में सांप्रदायिक तत्व कहलाए जा रहे हैं।
राजस्थान में ऐसे बीजेपी कैसे बचेगी यह ज्वलंत सवाल ‘महारानी’ से पूछने की किसी भाजपाई नेता की हिम्मत नहीं है। हां, कार्यकर्ता जरूर यह सवाल पूछ रहा है और कह रहा है कि भाजपाई वसुंधरा राजे से काम लेने के लिए किसी कांग्रेसी नेता की सिफारिश ज्यादा कारगर है। इनकी सरकार के मंत्री भी किसी भाजपाई की मदद नहीं कर पाते हैं, क्योंकि उन्हें वसुंधरा की तरफ से कोई छूट नहीं है। राजस्थान का हर आदमी जानता है कि ‘महारानी’ से मिलना कोई आसान काम नहीं है। फोन पर बात करना तो बहुत दूर की बात है। वसुंधरा राजे आज तक राजघरानों की परंपराओं से बाहर नहीं निकल सकीं हैं, इसीलिए आज भारतीय जनता पार्टी को राजस्थान में नुकसान हो रहा है। भाजपा के राजस्थान ही नहीं बल्कि दिल्ली के नेता भी कहते आए हैं कि यदि वसुंधरा की जगह पर कोई और मुख्यमंत्री होता तो राजस्थान में भाजपा का इतना बुरा हाल नहीं होता। इसीलिए राजस्थान में भाजपा की फिर से वापसी पर प्रश्न खड़े हुए हैं। राजस्थान में एहसास ही नहीं होता कि यहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। ‘महारानी’ के महल में भी प्रमुख कांग्रेसी नेताओं का बेरोक टोक आना जाना है। भाजपा के कलराज मिश्र जैसे कागजी नेताओं को इसीलिए राजस्थान का प्रभारी बनाया गया ताकि वह वसुंधरा के सामने कोई बकवास न कर सकें। इसीलिए पूर्व विदेश मंत्री और भाजपा नेता जसवंत सिंह और उनकी पत्नी ने महारानी के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है जो इस बात का संकेत है कि वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान में भाजपा का बंटाधार कर रही हैं।
राजस्थान

भाजपा में पूछा जा रहा है कि आखिर वसुंधरा राजे सिंधिया ने ‘कमल’ के लिए क्या किया? कितने वोट जोड़े? राजस्थान के गुर्जर तो भाजपा से उड़ा दिए? गुर्जर आंदोलन खड़ा कैसे हुआ? जब इसकी शुरूआत हुई थी तब ‘महारानी’ क्या कर रही थीं? इतने सारे लोग मरने के बाद अब क्या मतलब रहा है? कहने वाले कहते हैं कि ‘महारानी’ को इस बात से और राजस्थान की जनता से न तो कभी मतलब था और न आज मतलब है। उन्हें यह ताज भी राजघरानों के दरबारी रहे अटल बिहारी वाजपेयी के कारण हासिल हुआ था। वसुंधरा राजे सिंधिया देवी-देवताओं की तरह से अपनी पूजा करवाने और मॉडलिंग के अलावा करती भी क्या रहीं? उनका भाजपा के आम कार्यकर्ताओं से ज्यादा वास्ता ही नहीं रहा। वह तो उनसे मिलती भी नहीं है। भाजपा कार्यकर्ता कहा करते हैं कि इनके यहां कांग्रेस के नेताओं का कोई काम नहीं रुकता है जबकि भारतीय जनता पार्टी के नेता और कार्यकर्ता राजस्थान में भटकते फिर रहे हैं, फर्जी मुकदमों में जेल जा रहे हैं, और भारतीय जनता पार्टी के अभिशाप के कारण दूसरों की नजर में सांप्रदायिक तत्व कहलाए जा रहे हैं।
राजस्थान में ऐसे बीजेपी कैसे बचेगी यह ज्वलंत सवाल ‘महारानी’ से पूछने की किसी भाजपाई नेता की हिम्मत नहीं है। हां, कार्यकर्ता जरूर यह सवाल पूछ रहा है और कह रहा है कि भाजपाई वसुंधरा राजे से काम लेने के लिए किसी कांग्रेसी नेता की सिफारिश ज्यादा कारगर है। इनकी सरकार के मंत्री भी किसी भाजपाई की मदद नहीं कर पाते हैं, क्योंकि उन्हें वसुंधरा की तरफ से कोई छूट नहीं है। राजस्थान का हर आदमी जानता है कि ‘महारानी’ से मिलना कोई आसान काम नहीं है। फोन पर बात करना तो बहुत दूर की बात है। वसुंधरा राजे आज तक राजघरानों की परंपराओं से बाहर नहीं निकल सकीं हैं, इसीलिए आज भारतीय जनता पार्टी को राजस्थान में नुकसान हो रहा है। भाजपा के राजस्थान ही नहीं बल्कि दिल्ली के नेता भी कहते आए हैं कि यदि वसुंधरा की जगह पर कोई और मुख्यमंत्री होता तो राजस्थान में भाजपा का इतना बुरा हाल नहीं होता। इसीलिए राजस्थान में भाजपा की फिर से वापसी पर प्रश्न खड़े हुए हैं। राजस्थान में एहसास ही नहीं होता कि यहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। ‘महारानी’ के महल में भी प्रमुख कांग्रेसी नेताओं का बेरोक टोक आना जाना है। भाजपा के कलराज मिश्र जैसे कागजी नेताओं को इसीलिए राजस्थान का प्रभारी बनाया गया ताकि वह वसुंधरा के सामने कोई बकवास न कर सकें। इसीलिए पूर्व विदेश मंत्री और भाजपा नेता जसवंत सिंह और उनकी पत्नी ने महारानी के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है जो इस बात का संकेत है कि वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान में भाजपा का बंटाधार कर रही हैं।
very proudfuul
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